अब और भला क्या बयां करूँ
एक लहर हो तुम सागर सतह पर आशाओं की .
एक दवा हो तुम दिल के घाव की पट्टी पर निराशाओं की .
एक धड़कन हो तुम ह्रदय की चलती श्वास की .
एक किरण हो तुम अस्थिर संसार में विश्वास की .
एक फुहार हो तुम पिच्कारिओं के रंग की .
एक उपमा हो तुम पुष्प के खिलते हुए अंग की .
दिवस का अवसान तुम हो रवि उषा की भोर तुम .
जिस दिशा भी दृष्टि फेरो प्रकृति में चहुँ और तुम .
विहग का ही नीड़ तुम हो ब्रह्म का आकाश भी .
आरम्भ का ही सत्य तुम हो अंत का आभास भी .
अब सकल ब्रह्माण्ड छोड़ झाँक बैठा खुद को कभी .
गहन सागर में मोती दिखे मै ठिठका तभी .
न ही गुड़हल न गुलाब न ही सौंदर्य वो सरोज में .
वो छवि तुम में दिखी मै रहा जिसकी खोज में ........
एक लहर हो तुम सागर सतह पर आशाओं की .
एक दवा हो तुम दिल के घाव की पट्टी पर निराशाओं की .
एक धड़कन हो तुम ह्रदय की चलती श्वास की .
एक किरण हो तुम अस्थिर संसार में विश्वास की .
एक फुहार हो तुम पिच्कारिओं के रंग की .
एक उपमा हो तुम पुष्प के खिलते हुए अंग की .
दिवस का अवसान तुम हो रवि उषा की भोर तुम .
जिस दिशा भी दृष्टि फेरो प्रकृति में चहुँ और तुम .
विहग का ही नीड़ तुम हो ब्रह्म का आकाश भी .
आरम्भ का ही सत्य तुम हो अंत का आभास भी .
अब सकल ब्रह्माण्ड छोड़ झाँक बैठा खुद को कभी .
गहन सागर में मोती दिखे मै ठिठका तभी .
न ही गुड़हल न गुलाब न ही सौंदर्य वो सरोज में .
वो छवि तुम में दिखी मै रहा जिसकी खोज में ........